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कोरोना से पीड़ित दो आदमी एक ही निजी हस्पताल में भर्ती हुए। पूछताछ कर एक का नाम दर्ज किया गया 'लाख' और दूसरे का नाम 'करोड़'।
दोनों से पूछा गया, "क्या मेडिकल बीमा करवा रखा है?” दोनों का उत्तर तो हाँ था लेकिन स्वर-शक्ति में अंतर था।
बहरहाल, दोनों से उनकी आर्थिक-शक्ति और बीमा की रकम के अनुसार फीस लेकर हस्पताल में अलग-अलग श्रेणी के कमरों में क्वारेंटाइन कर दिया गया। लाख के साथ एक मरीज़ और था, जबकि दूसरे कमरे में करोड़ अकेला था। लाख को इलाज के लिए दवाईयां दी गईं, करोड़ को दवाईयों के साथ विशेष शक्तिवर्धक टॉनिक भी। फिर भी दोनों की तबियत बिगड़ गई।
लाख को जांचने के लिए चिकित्सक दिन में अपने समय पर कुछ मिनटों के लिए आता तो करोड़ के लिए चिकित्सक का समयचक्र एक ही बिन्दू ‘शून्य घंटे शून्य मिनट’ पर ही ठहरा हुआ था। उसके बावजूद भी दोनों का स्वास्थ्य गिरता गया, दोनों को वेंटीलेटर पर ले जाया गया।
कुछ दिनों के बाद...
लाख नहीं रहा...
और करोड़ के कुछ लाख नहीं रहे।