जिम्मेदारी -Quote
घर की ईंटे जोड़ते जोड़ते अपने स्वप्न महल को तोड़ता गया नादाँ सा आदमी था में सा'ब जिम्मेदारी में मोहब्बत छोड़ता गया हर उस सख्श से नाता तोडा जिस से मिलता सुकून था इश्क़ के लिए कहा वक़्त था, वक़्त से लड़ने का तो जूनून था जलन चुभन लगती रही, ख़्वाहिशें दिल में मरती रही जिंदगी यूँ ही चलती रही जिम्मेदारियाँ सिर्फ बढ़ती रही। कहते हे लोग के घर तो मेने बना लिया बड़ा पर कौन बताये उनको की कितने अरमानो के कबर पर है वो खड़ा किसे बताये के कौन से दौर से गुजर रहे है बस असली मंजिल की तलाश में अभी भी "दीप" भटक रहे हैं