कैसे लिखूं मैं कविता? -Poem
तेरे आने की क्या आरज़ू करूं! यहां तो एक सोच को आते भी महिनों गुज़र जाते हैं। कभी उन सूखे हुए रुक्को में अटक जातें हैं, कभी खुशबूओं के शहर में गुम हो जाते हैं, कभी टकराकर आपस में ही चूरचूर हो जाते हैं, हम भटकते रहते हैं अपनी ही दुनिया में, और एक तुम हो कि बाहर नहीं आते
what should I expect to come! Months pass here even thinking about it. Sometimes they get stuck in those dry places sometimes they get lost in the city of fragrances sometimes they collide and crumble with each other we keep wandering in our own world and you are the one who doesn t come out.