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शहीद भगत सिंह
आया था वो चीर धरा को लिए अनेकों सपने, मानी न कोई जाति ,धर्म कह दिया ,हो मेरे अपने | खाकर कसम भारत माता की लिया यही संकल्प, कि खुद भागेंगे गोरे न छोड़ूंगा कोई विकल्प| कर जवानी,देश हवाले खुद को झोंका ऐसा, किया आंदोलन,भड़क उठी जनता में
By: © Avinash Kumar Sah
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Poem : शहीद भगत सिंह
Poem Submited By: Avinash Kumar Sah
भारत तीर्थ
अग्निवेग का पवित्र प्रवाह हूँ अग्निदेव को समर्पित स्वाहा हूँ विश्वरूप का अविनाशी स्वरूप हूँ विश्वात्मा का अविचल प्रतिरूप हूँ चैतन्य मनुष्य का प्रारब्ध हूँ दैवीय मर्यादा से आबद्ध हूँ पूर्ण हूँ, सम्पूर्ण हूँ पारमेश्वर्य विहिन शूण्य हूँ
By: © Satyam Kushwaha
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Poem : भारत तीर्थ
Poem Submited By: Satyam Kushwaha
Poem : Let's Celebrate The Day
Poem Submited By: Bidyadhar Mantry
Poem : Death Of Pride
Poem Submited By: Avani Dhanuka
Poem : The Echoes Of The Tricolour
Poem Submited By: Ishita Tiwari
स्वतंत्रता
फिर आया पंद्रह अगस्त का दिन, माँ की आँखों में उम्मीदों की रौनक— आसमान में तिरंगा, गर्व से लहराता, धरती पर उमंग और उत्साह की बौछार; हर कोने में "वंदेमातरम्" की गूंज जुलूसों का रेला, नारों की धुन देशभक्ति के रंग में रंगे दिल अब सिर्फ स्टैटस म
By: © Ana Pearl