कुछ कहता है कवि मन(Motivational) - Poem by Shipra Jha - Spenowr
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Shipra Jha

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कुछ कहता है कवि मन

कुछ कहता है कवि मन, घनघोर घटाएं छाई नभ में, अश्रुधारा में पिघला है तन, मन से पांखें निकली है, किरणों में रहता कवि मन। छिटककर तितली किरणों से ही????, बागों में जा मिलती है, कण कण में जो फूल खिले तो, उड़ता है कवि मन। -शिप्रा
By: ©Shipra Jha
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कुछ कहता है कवि मन -Poem

कुछ कहता है कवि मन, घनघोर घटाएं छाई नभ में, अश्रुधारा में पिघला है तन, मन से पांखें निकली है, किरणों में रहता कवि मन। छिटककर तितली किरणों से ही????, बागों में जा मिलती है, कण कण में जो फूल खिले तो, उड़ता है कवि मन। -शिप्रा

says something like poet s mind. Decrease the thick wind the body is melted in the tears the eyes have come out of the mind the poet s mind lives in the rays. By splashing with the rays the butterfly gets into the gardens . Whatever flowers bloom in the particle particles the poet s mind flies. -Shipra

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